Sunday 22 September 2013

इंग्लैण्ड के अनुभव बहुत काम आयेंगे स्वामी रामदेव के भविष्य में - श्रीराम तिवारी

".....स्वामी रामदेव को यदि भारत में छह मिनिट के लिये भी पूछताछ के लिये रोक जाये या थाने बुलाया जाये तो गजब हो जायेगा। बाबा रामदेव नारी वेश में ‘मर्कट लीला’ करने लगेंगे। दक्षिण पंथी मीडिया पागल हो जायेगा।....."
इंग्लैण्ड के अनुभव बहुत काम आयेंगे स्वामी रामदेव के भविष्य में - श्रीराम तिवारी
(श्रीराम तिवारी लेखक जनवादी कवि और चिन्तक हैं. जनता के सवालों पर धारदार लेखन करते हैं.)

कल लन्दन के अंतर्राष्ट्रीय हीथ्रो हवाई अड्डे पर इंग्लिश अधिकारीयों ने छह घंटे तक स्वामी रामदेव से पूछ-ताछ की है। भारतीय नजरिये से प्रथम दृष्टया यह सरासर अन्याय और ना इंसाफी है। शायद दो सौ साल तक भारत पर शासन कर चुकने के बाद भी ब्रिटिश शासन और वहाँ के अधिकारियों को यह भली भाँति मालूम नहीं हुआ होगा कि भारत में ‘स्वामियों, बाबाओं, गुरु-घंटालों परजीवी उपदेशकों को विशेषाधिकार है कि कोई उन्हें साधारण आदमी ट्रीट नहीं कर सकता। उनके कृतित्व या उनकी सम्पदा के स्वामित्व में आड़े नहीं आ सकता। भारत में यदि किसी शासन-प्रशासन या जिम्मेदार तंत्र ने इन ‘ बाबाओं’ की थोड़ी सी भी जाँच-परख या उनके खिलाफ आ रही शिकायतों की सुनवाई की तो किसी की खैर नहीं। स्वामी रामदेव को यदि भारत में छह मिनिट के लिये भी पूछताछ के लिये रोक जाये या थाने बुलाया जाये तो गजब हो जायेगा। बाबा रामदेव नारी वेश में ‘मर्कट लीला’ करने लगेंगे। दक्षिण पंथी मीडिया पागल हो जायेगा। संघ परिवार, भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद्, ये अखाड़ा - वो मठ - ये गिरी, वो स्वामी सभी मिलकर देश में कोहराम मचाने को सदैव तैयार हो जायेंगे। इसमें उन्हें सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, कांग्रेस, धर्मनिपेक्ष, जनतांत्रिक-विदेशी ताकतें षड्यंत्र करती दिखाई पडने लगेंगी। अब स्वामी रामदेव यदि बिजनेस वीजा की जगह विजिटर वीजा लेकर अपने ‘उत्पाद‘ इंग्लैण्ड में बेचेंगे, तो वो भारत तो है नहीं कि पकड़ा-पकड़ी पर दस जनपथ के खिलाफ गर्दभ वाणी का बेजा इस्तेमाल कर अपना उल्लू सीधा कर सकें।

वे भले ही कहें कि मेरे पास गीता-रामायण जैसे संस्कृत साहित्य के अलावा कुछ नहीं तो कौन यकीन करेगा ? जब वे खुद चीख-चीखकर प्रचार कर रहे हैं कि उनके आविष्कारों की गूँज सारी दुनिया में है, उनकी ‘पतंजलि योग अनुसंधान केन्द्र‘ में तैयार की गयीं बेशकीमती आयुर्वेदिक दवाएं अमेरिका, यूरोप और इंग्लॅण्ड में भारी कीमत में खरीदी जातीं हैं। तो इसमें क्या शक है कि वे स्वयम् भी अपने पेटेंट्स उत्पादनों के ब्राण्ड एम्बेसडर बनकर ही तो इंग्लैण्ड गये हैं। अब इंग्लैण्ड में भाजपा या मोदी समर्थक सरकार तो है नहीं जो ‘स्वामी रामदेव, आशाराम, नित्यानंद या जयेंद्र सरस्वती की पाद पूजा करे, उनकी वित्तैष्णा, कामेश्णा, यशेष्णा को तुष्ट करे। स्वामी रामदेव को अपनी इंग्लैण्ड यात्रा से पहले अपनी वास्तविक स्थति को ध्यान में रखकर और यह सोचकर यात्रा करनी थी कि वे जिस देश में पैदा हुये हैं सिर्फ वो ही दुनिया में उनके लिये सबसे ज्यादा मुफीद है। उन्हें श्री-श्री रविशंकर, आचार्य रजनीश उर्फ़ ऒशो, महर्षि महेश योगी और अन्य ‘विलायत रिटर्न’ अपने पूर्ववर्ती असफल स्वामियों, बाबाओं के कटु अनुभवों से भी कुछ सीखना चाहिए था। स्वामी विवेकानन्द ने भारत और हिन्दू धर्म को शिखर पर पहुँचाने के लिये ‘तिजारत’ या झूठ-कपट का सहारा नहीं लिया था। आधुनिक दौर के यायावर-पाखण्डी धर्म प्रचारकों ने भारत का नहीं स्वयम् का कल्याण करने में हिन्दू धर्म को दाँव पर लगाया है।

इसीलिये प्राय: आरोप लगाया जाता है कि भारत में कुछ लोग सिर्फ हिन्दू स्वामियों, बाबाओं और प्रवचन कारों को ही घेरते रहते हैं। अल्पसंख्यक धर्म गुरुओं के भ्रष्टाचार, पापाचार और कदाचार को दबा दिया जाता है। हो सकता है भारत में हिन्दुओं के सापेक्ष अल्पसंख्यकों को कम कुख्याति मिली हो। लेकिन इसका अभिप्राय यह कदापि नहीं कि किसी खास धर्म-मजहब के ‘मज़हबी लीडर‘ पाक-साफ़ हैं। कौन कहता है कि केवल हिन्दू धर्म के बाबा स्वामी या संत ही बड़े बदमाश हैं? धर्म-मजहब कोई भी हो उसका मूल आधार अंध-श्रद्धा ही है। सभी धर्मों-मजहबों-पंथों-दर्शनों में वक्त के साथ गिरावट आयी है। वैसे भी दुनिया के तमाम धर्म-मजहब और उनके धार्मिक ग्रन्थ सिखाते हैं कि “केवल उनका धर्म-पंथ, मजहब ही श्रेष्ठ है, उस पर ही यकीन करो, उसके संस्थापक पर ही यकीन करो, बाकी के धर्म मजहब सब झूठे हैं”। हिन्दू धर्म में इतनी कट्टर अवधारणा नहीं है। बल्कि केवल हिन्दू धर्म ही है जो सिखाता है कि :-

“एकम् सद् विप्रा बहुधा वदन्ति”
(सत्य एक ही है, संसार के सभी धर्म-मजहब के लोग उस परमात्मा या सत्य को अपनी भाषा या वाणी से उद्घोषित किया करते हैं)

“सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग्भावेत्”
(सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों, सभी में समग्र दृष्टि हो और सभी के दुखों का निवारण सभी मिलकर करें)

बहुत शर्मनाक है कि इस दौर के हिंदुत्ववादियों-गुरु घंटालों और धंधेबाज स्वामियों ने अपने निहित स्वार्थ के लिये ‘हिन्दू धर्म‘ की वास्तविक छवि को धूमिल करने का काम किया है। हिन्दू धर्म के उच्चतम मूल्यों और सिद्धान्त पर रमण करने वाले योगी महात्मा तिजारत-व्यापार नहीं किया करते। अन्य धर्मों में यदि ये मूल्य नदारत हैं तो यह उस धर्म-मजहब के अनुयाइयों के चिन्तन का विषय है। सच्चे हिन्दू लोग सिर्फ इसलिये परिस्थितियों को स्वीकारने के लिये नहीं बैठे कि ये तो सभी संस्कृतियों और धर्मों-मजहबों की दुर्गति का दौर है। बहरहाल यहाँ भारत में तो हिन्दू धर्म के बाबाओं-स्वामियों का ही ज्यादा बोलबाला है अतएव उन्हीं की पूजा और उन्हीं की आलोचना का दौर है। गैर हिन्दू धर्म के बारे में उनके अनुयायी ही फैसला करेंगे कि क्या उचित है ? क्या अनुचित है ?

बेशक हिन्दू धर्म के स्वामी-बाबा और धर्माचार्य तो ‘सत्पथ’ पर नहीं चल रहे हैं। चंद सच्चे साधू-संतों को छोड़ अधिकाँश ‘धर्म-प्रचारक' मठाधीश केवल www याने [welth, women, wine] में रमण कर रहे हैं। वे वर्तमान संप्रग सरकार में अपने कर्मों के कारण न केवल बदनाम हो रहे हैं बल्कि जेल भी जा रहे हैं, इसीलिये वे पाखंडी ढोंगी धर्मगुरु-कट्टरतावादी हिंदुत्व की राजनीति करने वालों के कट्टर प्रचारक बन चुके हैं। अधिकाँश परजीवी धन्धेबाज, चालाक और धूर्त-ज्योतिषी-कर्मकांडी इस फिराक में रहते हैं कि राज्यसत्ता का अविरल सम्मान और समर्थन उन्हें मिलता रहे। वे केवल ‘राम-नाम जपना - पराया माल अपना’ के अभिलाषी हैं।

आशाराम, निर्मल बाबा, कंधारी बाबा, ये आश्रम वो डेरा और न जाने कितने नामी-गिरामी अपराधी हैं जो निरीह जनता को बेवकूफ बनाकर दौलत के ढेर पर बैठे हैं। स्वामी रामदेव इन सब में नंबर वन हैं। राजनैतिक भ्रष्टाचार को समाप्त करने, विदेशी बेंकों से काला धन वापिस लाने की दुहाई देने वाले बाबा रामदेव का राजनैतिक सरोकार तो समझ में आता है किन्तु धर्म अध्यात्म और ‘दर्शन’ से उनका कोई लेना-देना नहीं है। वे अब व्यक्ति नहीं संस्था हो चुके हैं। वे योग गुरु, के बहाने सरकार से और समाज से अपने व्यापार के लिये, तिजारत के लिये विशेषाधिकार की आकाँक्षा रखते हैं। कांग्रेस और यूपीए से अब उन्हें कोई उम्मीद नहीं है इसलिये उगते सूरज - नरेन्द्र मोदी का “नमो-जाप” शुरू कर दिया है बाबा रामदेव ने। लेकिन भाजपा, एनडीए या मोदी के सहयोग से ये सुविधा उन्हें शायद भारत में ही मिल सकती है। इंग्लैण्ड में या अमेरिका में ‘संघ परिवार’ की ताकत अभी सीमित है। अमेरिका में जब ईसाई जॉर्ज फर्नाडीज के कपड़े उतरवा लिये जाते हैं और मुसलमान शाहरुख खान को अपमानित किया जाता है तो बाबा रामदेव कुछ नहीं बोलते। लेकिन जब उन पर बीतती है तो ठीकरा कांग्रेस या ‘धर्मनिरपेक्ष’ जमात पर फोड़ देते हैं। गनीमत है स्वामी रामदेव की इंग्लैण्ड में लंगोटी तो सलामत रही। रामदेव को सोचना चाहिए कि “संतों का सीकरी सों काम” यदि राजनीति ही करनी है या धंधा ही करना है तो योग का ढोंग छोड़ना होगा। विशुद्ध व्यापार के लिये तो अंग्रेज दुनिया में वैसे ही बहुत मशहूर हैं। आशा है कि स्वामी रामदेव जी को इंग्लैण्ड से जो कुछ भी अनुभव मिले वे उनके भविष्य में अवश्य काम आयेंगे।
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